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अतुल कु मा यादव ( एल - एल॰एम॰थम समेर ) वि संकाय वभाग एस . एस . जे . परसर कु माऊँ व॰व॰अोडा “ पंथपेता ” “ यद व इतहास थाई मह का कोई पाठ पाता है तो वह यह है क यद म को जीवत खा है औ यद ाजीत कसी ज समुदाय के ायपूर अका को बाये खा चाहती है तथा उसे सुढ वह आसाी बाा चाहती है तो म को ाजीत से मत ही कया जाा चाहए। 1 1 *.... If the history of the world yields of any lesson of the lasting character , it is that religion cannot be mixed up with politics .” डार लंका सुरम एक सेूलर ेट फार इंडया पृ - 2. लेखक - डॉ॰ पुखराज जैन राजनीि ान ( बीए थम ष ) अाय 23 पंथनरपेिा ( पाात और भारिीय कोण ), पृ – 215 , सात भन पके शन - डॉ॰ लंका सुम पंथपेता के वचा का उदय 15 वीं -16 वीं सदी के पुजागर औ ामक सुा आंदोल के ाा आ है। पंथपेता की ारा का उदय पंथपे कोर के आा प ही आ है। अतः पंथपेता के संदभ म पंथपे का आशय भी समझ लया जाा चाहए । 2 पंथपे के लए आं भाषा का श जो सूल है , उसका उदय लैि भाषा से आ है। लैि भाषा म सूल श का अथ सांसाक होता है। इस म पंथपे का अथ है , वह वृ जो ाजीतक गतवयों को के वल लौकक े तक सीमत खे का 2 लेखक - डॉ॰ पुखराज जैन राजनीि ान ( बीए थम ष ) अाय 23 पंथनरपेिा ( पाात और भारिीय कोण ), पृ – 215 , सात भन पके शन समथक है औ जसे म से कोई लेा देा हीं है। कााक से इसका अथ यह है क म पंपाओं औ ामक गतवयों से अलगाव। सकााक से इसका अथ है सभी वषयों के संबं म वचा की एक लौकक । एक श म " पंथपेता " का आशय है " सव म समभाव " । कु ल मलाक पंथपेता वह ीत या सांत है जो ामक ैतकता औ सहुता प आात होता है औ जो अपे सभी ागकों को उके वर , जात , लंग , म , वास औ अ भेदों प वचा कए बा उ उचत सीमा तक म औ वास की तंता दा कता है। यू ं तो पंथपे श भातीय संवा की उेशका म 42 व संवा संशो 1976 के ाा आया। " हम , भात के लोग , भात को एक संपूर भु संप समाजवादी पंथपे लोकतंाक गरा बाे के लए " 3 जबक भात देश ाची काल से ही मपे हा है यहां सभी मावलंबयों के साथ समा वहा कया जाता हा है। भात म इसका ताय यह के वल मा है क ा म के मामले म पूरता तिथ है। ा ेक म को समा प से संर दा कता है , कं तु कसी म म हेप हीं कता है। ा के पंथपे प से म कोई 3 भारि के संधान की उेशका से। हवाद हीं है 4 मपेता ई वोी है औ ई समथक। यह भ , संशयवादी औ ाक सभी को समा माती है । 5 भातीय संवा की उेशका की चौथी पं वचा अभ वास म औ उपासा की तंता औ मूल अका भाग ती के अुेद 25- 28 इस बात की हम गांिी भी दा कता है क ेक को अपे वास के अुसा कसी भी म को माे तथा कसी भी ढंग से ई की पूजा के की पूर तंता होी चाहए । 6 4 डॉ॰ जय नारायण पाेय भारि का संधान अाय 14, 45 ां संरण 2012 5 अमदाबाद से जेयर कालेज बनाम गुजराि रा AIR 1974 SC 1389, बोई बनाम भारि संघ (1994) 3 SCC 1, इाइल फाकी बनाम भारि संघ , 1994 6 SCC 360 6 डाउ बनाम डेल , 1921, 182, US 244